भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। प्राचीन धर्मग्रंथों का अवलोकन करे तो उनमें भी सब लोगों को साथ लेकर चलने का भाव निहित है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ में इसी बात की पुष्टि की गई है। नब्बे के दशक में उदारीकरण के बाद विकास की यह अवधारणा नए रूप में